मैने देखी है: Main Ne Dekhi Hai, Garibi Main Kahani

 मैने देखी है: Main Ne Dekhi Hai


मैने देखी है: Main Ne Dekhi Hai,  Garibi Main Kahani

मैने देखी है

बचपन सब का एक समान नहीं होता, हमारा बचपन भी समान नहीं था, हमारा परिवार कहने के लिए छोटा था एक बूढ़ी दादी हमारा एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहन के साथ मम्मी और पापा, हम सब साथ रहते थे । कहने को छः लोगो का एक छोटा सा परिवार था लेकिन एक गरीब घर के लिए ये एक बहुत बड़ा परिवार था। पापा रोज मजदूरी करने घर से जाते और शाम तक 200 रुपए कमा के आते। इन 200 रुपए को यदि छः लोगो मे बाटे तो लगभग 33 सब के हिस्से मै जाता, इतने मै तो आज_कल एक इन्सान का एक समय का पेट भी बहुत मुस्किल है भरना, और हम छः लोगो का परिवार इतने पैसे मै ही गुजारा कर रहे थे। हम भाई बहन और दादी तो ठीक ठाक पेट भर के खा लेते लेकिन सायद मम्मी पापा का पेट भरता था या नही ये हम बता भी नही सकते, क्यू कि कभी मम्मी पापा ने ये एहसास होने ही नही दिया। 


पापा रोज घर से बाहर काम पे जाते और इधर दादी अपनी सास की किरदार में पुरा डूब जाती, ऐसा कोई दिन नही गुजरता जब दादी मां को गाली गलोज ना की हो, हम सब तो समझ ही नहीं पाते की मां इतनी शांति से सारा काम करती हैं फिर भी दादी क्यू नही कुछ बोलती ओर मां दादी को कुछ क्यू नही बोलती, कभी कभी हम भाई बहन मै से कोई कुछ बीच में बोल देते तो उस दिन उसकी कुटाई तय मानो। मै घर मैं सबसे छोटा था और सब का लाडला भी था सिवाय दादी की, दादी बड़े भईया को जादा प्यार करती थी। मै प्यार भरी सब्दो से जब मां से पूछता, मां दादी आपको इतना बूरा भला क्यू बोलती है, मां कहती पता नहीं बोलने दो , पर आप क्यू नही कुछ बोलती दादी को ,, बेटा मेरी मां कहती है सास मेरी मां समान ही है इस लिए कभी उनसे मुंह मत लगाना और पलट कर जवाब मत देना, मै तो सिर्फ अपनी मां की बात मान रही हू, मै भी आपकी बात हमेशा मानुगा मां, मेरा अच्छा बेटा। मां फिर अपने कामों मै लग गई ओर मै भी घर से बाहर निकल गया। दादी भईया के साथ बाजार से आ रही थी आज दादी को वृद्ध पेंशन मिला था। हर बार की तरह भईया के लिए कुछ दादी ले आती परंतु मै ओर दीदी भईया के रहमों पर निर्भर था, यदि भईया को मन होता तो ही हमे कुछ मिल पाता , पर ऐसा बहुत कम ही होता की भाई हमे भी कुछ दे, आखिर दादी का लाडला जो था। मां तो ऐसे भी दादी के मामलो में कुछ नहीं बोलती। 

 हम बहुत गरीब थे ये हमारे कपड़ो से भी साफ झलकता था। हमारे बदन पे एक गंजी और हॉफ पेंट बस इतना मै ही साल के 8 महीने किसी न किसी तरह गुजर ही जाते, बहुत जल्द ही पर्व आने वाला था, जिसमें पापा हम सब को एक बार साल मै नए कपड़े जरूर दिलाते। भईया तो हमेशा से जो पसन्द होता उसे जिद्द से ही सही पर ले ही लेते , मै ओर दीदी को जो मिलता खामोशी के साथ स्वीकार करते। मैं कभी किसी चीज का डिमांड नहीं करता था, ओर न कभी किसी से कोई शिकायत। घर में हम सब के लिए कुछ न कुछ तो आ जाता परन्तु पापा कभी अपने लिए कुछ नहीं लाते, और मां तो हमेशा कहती मेरे पास सब कुछ है हमे कुछ नहीं चाहिए,, पर मां जब बहुत ज्यादा जिद्द करती तभी मां मेरे साथ बाजार से पापा के लिए एक कपड़े खरीद लाती। जिसे पापा पहनते तो नहीं बस कह देते कहीं बाहर जाएंगे तब पहनेंगे अभी बक्सा मै रख दो।

उस दिन हम सब भाई बहन पापा और मां के साथ मेला घूमने जाते, आज जब मैं वो दिन याद करता हूं तो मेरे आंखो में आंसू भी आ जाते है और उस परिस्थितियों को महसूस करता हूं तो मां और पापा के बलिदान को किस शब्दों मै कहूं समझ नहीं पा रहा हु मेरे पास कोई शब्द ही नहीं कि मैं एक दिन मैं भी बता पाऊं। शाम को काफी घर मै नौटंकी के हम सब घूमने निकलते है। अभी मेला घूमना शुरू ही हुआ की भईया को एक खिलौना पसन्द आ गया , पर पापा ये कह के आगे निकल जाते की वापस लौट के दिलाएंगे, और हम सब आगे निकल जाते, काफी समय तक घूमने के बाद जब हम सब थक जाते तो पापा हम सब को एक चाट के दुकान पे सब को खाने के लिऐ बैठाते पापा सब के लिए एक एक चाट का ऑर्डर देते उस समय एक चाट 15 रूपए की आती थी, 

पापा सब को एक एक चाट का प्लेट ला के देते मां को भी ला के देते पर कभी भी अपने लिए ऑर्डर नहीं करते , मां और पापा के बीच इसरो मै ही कुछ बाते हो जाती थी, फिर मां ही कहती हम इतना नहीं खा पायेंगे आप भी इसी मै से खा लिज्ये,पापा एक चमच्च एक्स्ट्रा लेकर मां के साथ ही थोड़ा सा खा लेते थे, मै छोटा था तो मैं कभी पूरा प्लेट चाट खा ही नहीं पता था तो अन्तिम मै बचा हुआ पापा खा लेते थे। खा के एक दादी के लिए पैक कराकर जब आगे निकलते तो दीदी कुछ मां से कहती और फिर मां पापा से कुछ कहती फिर पापा इसरो में कहते चलो, दीदी अपने लिए कुछ समान लेती है फिर हम आगे निकल जाते, इसके बाद मुझे भी एक खिलौना पसन्द आता है कैरम बोर्ड मै पापा को ईसरा करता पापा मुझे भी ये कैरम चाहिए, पापा दूकान के करीब आकर कैरम का दाम पुछते है, 250 रूपए सुन पापा थोड़ी देर कैरम को उठा कर देखते है फिर कहते बहुत महंगा है, चलो मैं तुम्हे दूसरी दिला दूंगा मैं इतना तो समझ जाता की सायद पापा के पास पैसे नहीं हैं, मै ज्यादा जिद्द नहीं करता और खामोशी से खड़ा रहता, 

भईया को भी वीडियो गेम पसन्द आ जाता है उसकी कीमत भी लगभग 200 बताता है, पापा फिर कहते  दूसरा देख लो  परंतु भईया एक बार जिद्द कर लिया तो कर लिया , अब पापा वीडियो गेम खरीद तो नही सकते इसलिए हम सब वहा से आगे निकल जाते है, भईया पुरा रास्ता आगे आगे गुसे से चलते जाते है, पापा भईया को आवाज लगाते उसके पीछे पीछे चलते जाते है। ऐसे भी ऐसा कभी नहीं हुआ की हम सब कभी खुशी खुशी घर पहुंचे हो। खेर हमारी गरीबी ऐसे ही मजाक उड़ाते रही। हमारा जीवन धीरे धीरे ऐसे ही आगे बढ़ता रहा , भईया ने किसी तरह 10वी पास किया और उसके बाद पढ़ाई छोड़ दी ऐसे भी हम सब सरकारी स्कूल से थे जहां पढ़ाई सिर्फ डिग्री तक ही सीमित थी। दीदी थोड़ी पढ़ाई मै अच्छी थी और वो 12th मै पढ़ाई कर रही थी। मै उस समय 9th मै था पर मेरा पढ़ाई से दूर दूर तक कोई नाता नहीं था, मुझे सिर्फ क्रिकेट खेलना पसन्द था, किसी तरह टीचर की मेहरबानी से.......



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