ब्रेड पर बड़ा खुलासा
क्या कभी पैकेट घुमा के देखा है ? जिस ब्राउन ब्रेड को आप हेल्दी समझते है उसमे क्या क्या डाला हुआ है । आज के दिन दुनिया भर मे ब्रेड एक बहुत ही आम भोजन सामग्री है। इसे हर समय हर कोई खाता है। भारत में कितने जरिए है इसे खाने के ब्रेड जैम, ब्रेड पकोड़ा, ब्रेड हलुआ, ब्रेड ऑमलेट, ब्रेड गुलाबजामुन, ओर भी बहुत सारे, लेकिन पुछने वाली बात यह है कि वास्तविक रूप से इस ब्रेड मै डाला क्या हुआ है ? और ये हमारी हैल्थ के लिए सही है या हानि कारक ? व्हाइट ब्रेड और ब्राउन ब्रेड मै अन्तर क्या है ? रोटी से इसे कैसे तुलना की जा सकती है?
चलिए हम ब्रेड कि गहराई से जांच करते है! ये ब्रेड वास्तविक रूप से होती क्या है ? बैसिकली देखा जाए तो ब्रेड 4 अहम चीजों से बनती है पहला व्हीट फ्लौर ( आटा या मैदा ), दूसरा पानी, तीसरा नमक, और चौथा यीस्ट। अब सवाल ये उठता है कि नमक क्यों डालते है ब्रेड मै, तो बता दे कि नमक डालने के तीन प्रमुख कारण है । पहला कारण यह की नमक मे नैचुरल एंटीऑक्सीडेंट है, एक नैचुरल प्रिजर्वेटिव का काम करता है जिसकी वजह से ब्रेड को ज्यादा देर तक स्टोर कर के रखा जा सकता है। दुसरा ब्रेड का स्वाद अच्छा हो जाता है नमक डालने कि वजह से, और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण नमक कि वजह से जो ग्लूटेंट स्टैंड्स होते है वो ज्यादा मजबूत बनते है। आटा को जब गुंधते है तो उसमें मौजूद ग्लूटेंट आटा को वो मजबूती प्रदान करते है जिसके कारण आटा का गोला या रोटी एक पिस मे बने रहते है और नमक डालने से ये ग्लूटेंट स्टैंड्स ओर मजबूत होते है। फिर हमारा आता है चौथी सामग्री यानी यीस्ट हिन्दी में हम इसे खमीर कहते है। यीस्ट या खमीर वास्तव मे single celled microorganisms होते है जो की फंगई रूप में आते है। जब ये खमीर आटे में मौजूद कॉर्बोहाइड्र के साथ रिएक्ट करते है तो दो चीजे रीलीज होती है ETHANOL और कार्बनडाईऑक्साइड इस पूरे प्रक्रिया को फर्मेंटेशन बोलते है। अब इस प्रक्रिया जो कार्बन डाइऑक्साइड के बबल निकलते है वो वास्तव में ग्लूटेंट स्टैंड्स में ट्रैप हो जाते है जिसकी वजह से एक ब्रेड फूलती है। आप नोटिस करोगे की ब्रेड मै आपको गोल गोल बबल्स जैसे कुछ दिख रहे है। अब इस रिएक्शन में इथेनॉल भी निकलती है ओर जैसा कि हम जानते है इथेनॉल एक प्रकार कि अल्कोहल ही होती है। जब हम फर्मेंटेड आटे को ओवन के अन्दर डालते है ओर बेकिंग करना शुरू करते है तो इथेनॉल वाष्पीकृत हो जाता है ओर इथेनॉल वाष्पीकृत होने से ये ब्रेड ओर ज्यादा फुलने लगता है । इस पुरे प्रक्रिया में पुरा का पुरा इथेनॉल वाष्पीकृत नहीं होता है बल्कि कुछ अंश रह जाता है। अमेरिकन कैमिकल सोसाइटी ने सन् 1920 में कुछ एक्सप्रीमेंट किया और उन्होंने पता लगाया कि 0.04% से लेकर 1.9% तक की एल्कोहल ब्रेड मे पाया जाता है। लेकिन इससे डरने कि कोई बात नहीं है इतनी छोटी मात्रा में अल्कोहल से कुछ नहीं होगा आपको बल्की उन्होंने सिर्फ इतना ही बताया कि ये मात्रा ब्रेड मे टेस्ट बढ़ाने तक ही सीमित है। इस ट्रेडिशनल तरीको से ही सदियों से दुनिया भर में ब्रेड बनते आ रहे है।
आखिर ये ब्रेड का आइडिया सबसे पहले किसे आया होगा? कैसे शुरू हुआ होगा? हम आपको कुछ तथ्यों से समझाते है। साल 1857 मे लुई पाश्चर ने फर्मेंटेशन की साइंटिफिक प्रोसेस दुनिया को बताई थी इसके बाद ही हमें पता चला कि फर्मेंटेशन वास्तविक मै होती क्या है। लेकिन इससे पहले लोग इस प्रोसेस का इस्तेमाल करते आ रहे थे बिना पता हुए कि यहां हो क्या रहा है।
हमारे पास एक रोटी है दुसरा ब्रेड है इसमें सिर्फ दो चीजों का अन्तर है रोटी बनाते समय हम नमक और खमीर का उपयोग नही करते इस रोटी फुलती नही है उस तरीके से जिस तरीके से ब्रेड फूलती है। और दूसरा हम ज्यादा देर तक प्रिजर्व करके नही रख सकते रोटी को। रोटी को खुली हवा में रखेंगे तो एक दिन बाद वो खाने के लायक नहीं बचेगी रोटी खराब हो जायेगी। अब सोचने वाली बात ये है कि आखिर ये सोच किसके अन्दर आया की साधारण रोटी बनाते समय यदि खमीर डाल दें तो ये फुल जायेगी। इतिहासकारों के लिए ये चीज एक डिबेट का मुदा है । अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 4000BC में इसकी शुरुआत इजिप्ट से हुई होगी। इजिप्ट में बैठा कोई साधारण रोटी बना रहा होगा और वो उस आटे को कुछ घंटो के लिए शायद भूल गया होगा और हवा में वाइल्ड यीस्ट मौजूद थे जो उस आटे के साथ इंटरैक्ट करने लगे ओर जब उस बैकर ने इस आटे को फिर से बनाने के लिए आग में डाला तो रोटी को फुलता देख हैरान हो गए सब, उसने देखा कि ये खाने में बहुत ही मुलायम है मजेदार है फिर से बनाने के लिए कोशिश करते है उन्हें लगा कि आटे को फिर से हवा में रख देंगे तो ऐसी चीज फिर से बन जायेगी लेकिन ऐसा होने के संभावना कम थी। शायद फिर किसी ने बासी बचे हुए आटे को ऐसे ही नए आटे के साथ मिला के रोटी बनाने कि कोशिश होगी लेकिन वो फिर से बहुत ज्यादा फुल गया और वही मुलायम ओर स्वाद पाया जो पिछली बार पाया था। इस तरह धीरे धीरे इन्सानों ने डेवलप किया ब्रेड बनाने का तरीका।
समय में थोड़ा आगे चले तो कहा जाता है कि क्रिस्टोफर कोलंबस पहली बार इस ब्रेड के कॉन्सेप्ट को अमेरिका ले कर गए। और भारत में यीस्ट वाली ब्रेड का कॉन्सेप्ट पहली बार Portuguese लोग लाए थे पाव के फॉर्म में। Portuguese लोग पहले इसे गोवा लेकर आए फिर मुम्बई में, और यही कारण है कि आज के दिन तक मुंबई का बादापावो बड़ा प्रसिद्ध है। थोड़ा समय को आगे ले चले तो पाव यानी ब्रेड अब घर के लिए आम भोजन मै सामिल हो गई। लेकिन फिर हमारी कहानी में एंट्री होती है इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन की, ब्रेड जैसा प्यारा होममेड खाना इंडस्ट्रि मै बदल जाता है। कमर्शियल स्तर पर इसकी शुरुआत होती है यीस्ट से। किसीने कहा की हम इस वाइल्ड यीस्ट का इंतजार नही कर सकते अपनी ब्रेड बनाने के लिए बल्की हमे इस यीस्ट को किसी तरह से ट्रैप करके रखना होगा ताकि हम जब चाहे तब इसका इस्तेमाल कर सके। ऐसे बन कर आया प्रेस्ड यीस्ट जिसे ठोस क्यूब में बेचा जाने लगा। सन् 1867 में वियना में कुछ बैकर्स को क्रैडिट दिया जाता है कि इन्होने पहला प्रेस्ड यीस्ट बनाया। आज के दिन इसे हम ब्रेकर्स यीस्ट भी कहते है और आप इसे पैकेट में खरीद भी सकते है। लेकिन फिर किसी ने सोचा कि हमें ये यीस्ट चाहिए ही क्यों हम इसका इस्तेमाल करते है एक गैस निकालने के लिए जिससे कि ये ब्रेड फूलती है, क्यों ना हम कोई ओर चीज इस्तेमाल करे गैस निकालने के लिए और यहां पर एंट्री होती है सोडियम बाई कार्बोनेट कि जिसे हम बैकिंग सोडा भी कहते है। बैकिंग सोडा एसिड के साथ रिएक्ट करता है ओर कार्बनडाइऑक्साइड रिलीज होती है जो कि ब्रेड को फुलने का काम करता है। लेकिन ये एसिड कहां से आया इसके लिए हम दुध, बटरमिल्क, या लेमन जूस का प्रयोग कर सकते है। फिर किसी ने सोचा क्यों ना हम ये बैकिंग सोडा और एसिड को मिलाकर एक पैकेट में बैच दे। एक मोस्चर फ्री पैकेट में इन दोनों को मिलाया जैसे ही इसे पानी में डालोगे रिएक्शन शुरू हो जाएगा। इसे बुलाया जाता है बैकिंग पाउडर जिसमे डाला गया होता है बैकिंग सोडा ओर कोई एसिडिक चीज जैसे ENO का नाम सुना है जिसमें मौजूद होती है बैकिंग सोडा ओर सेट्रिक एसिड। मतलब लगभग 1850 से ब्रेड में थोड़ा थोड़ा कैमिकल का इस्तेमाल होने लगा। लेकिन इसके बाद थोड़ी चीजे बिगड़ने लगी ।
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