सोनम वांगचुक प्रोटेस्ट_लद्दाख । सोनम वांगचुक

सोनम वांगचुक प्रोटेस्ट_लद्दाख  । सोनम वांगचुक

सोनम वांगचुक प्रोटेस्ट_लद्दाख 

 सोनम वांगचुक फैमस एक्टिविस्ट इंजीनियर और लद्दाख के सबसे शिक्षित व्यक्ति, इन्हें तमाम अवॉर्ड मिल चूके है दुनिया भर से जिसमें मेग्सस अवॉर्ड भी शामिल है। इन्ही के आउट ऑफ द बॉक्सेस सोच कि वजह से एंस्पायर होता है 3-IDIOTs मूवी के पुनसुख वांगडू । रियल लाइफ के 3 इडियट्स मूवी में सत्य और साइंस होती है जीत और चतुर के एरोगेंस कि होती है हार, लेकिन जहां रियल लाइफ कि बात करो तो राजनीति अक्सर होती है जीत और सत्य को अक्सर मिलती है मात । 21 दिनो से सोनम वांगचुक भुख हरताल पर रहे, लद्दाख के खुले आसमान के नीचे जहां तापमान -15 डिग्री तक पहुंचना तो बहुत आम बात होती है वहीं उन्होंने अनशन किया वहीं उन्होंने रात को सोने भी गए, यहां काफी लोग भी शामिल हुए लेकिन भारत सरकार ने पानी तक नहीं पूछा। 
 एक समय में मोदी सरकार को बहुत मानने वालों में एक नाम सोनम वांगचुक का भी शामिल था। इन्होंने आर्टिकल 370 के लागू होने पर स्वागत किया था। लद्दाख का नया सवेरा कह कर इन्होंने देखा था । लेकिन अब सोनम वांगचुक का भरोसा, विश्वास, यकीन, उम्मीद सब उठ चुका है मोदी सरकार से। अनशन के दौरान इन्होंने रोज एक वीडियो बनाया ओर देश को बताया की लद्दाख जैसे ईको सेंसिटिव जॉन को स्पैशल प्रोटेक्शन की जरूरत क्यों है और मोदी सरकार ने 6th सेडुयल के तहत लद्दाख को प्रोटेक्शन देने का वादा भी किया था, लेकिन इस वादे को बीजेपी ने कैसे ठुकरा दिया शायद कुछ तो मजबूरी होगी मोदी सरकार कि भी।
सोनम वांगचुक कहते है कि ये माइनिंग और इंडस्ट्रियल लॉबी की एक साजिश है लद्दाख को बस एक कॉलोनी बना देना है , जिसके बाद यहां के प्राकृतिक संपदा को सिर्फ लूटना है । लाखों लोगों ने ये देखा कि कैसे सोनम वांगचुक दिन पर दिन कमजोर होते रहे कुछ शहरों में लद्दाख के समर्थन में कुछ लोगों ने प्रोटेस्ट भी किया । सिविल सोसाइटी ने अपनी आवाज उठाने कि कोशिश कि अपना समर्थन देने कि कोशिश कि, लेकिन 21 दिनों के बाद भी 6th सेडुल तो बहुत दूर की बात है मोदी सरकार या उसका कोई नेता चमचा तक भी उससे मिलने तक नहीं गया। मानो किसी को कोई घंटा फर्क नहीं पड़ता है। सरकार चुप है। लेकिन ये अनशन अभी रुका नहीं है, सोनम वांगचुक ने कहा है ये अनशन उसके मरते दम तक चलता रहेगा जब तक कि सरकार लद्दाख को न्याय नहीं देती है। लेकिन सरकार उनकी सुनेगी ये तो वक्त़ ही बतायेगा लेकिन ऐसा होते अभी तक तो कुछ दिखा नही है।  2011 में अण्णा हजारे ने भी अनशन किया था लोक पाल बिल पास करवाने के लिए देश में उस समय सनसनी मच गई थी गांधी भक्त अण्णा हजारे मरते दम तक का अनशन, आखिर 13 दिनों के बाद अनशन खत्म हुआ। UPA सरकार एंटी करप्शन मुवमेंट के जो अहम डिमांड थे उसे मान भी चुकी थी और ओर अण्णा हजारे ने अनशन तौर दिया। नैशनल TV पर इसे ब्रॉड कॉस्ट भी किया गया तब हर मीडिया न्यूज चैनल पर दिन रात इस मुद्दे को दिखाया गया लोग रास्ते पर उतरे ओर तब यूपीए सरकार कि ईट से ईट बजा दी। लेकिन वो अलग बात है कि 2014 के इलेक्शन के बाद अण्णा हजारे मोन व्रत धारण कर लिए, लेकिन सचाई तो यही है कि एक समय था जब छात्र से लेकर बुजुर्ग तक जब वो प्रदर्शन पर उतर आते तो we as a citizen हमे फर्क पड़ता सरकार कुछ न कुछ तो जरूर सुनती, कोई न कोई नतीजा तो निकलता। आज मीडिया ने लद्दाख को इतना बड़ा जो प्रोटेस्ट हुआ है वहां उसे पूरी तरह से ब्लैकआउट कर दिया । वो समय था जब नेता जा कर धरना प्रदर्शन करने वालो से बात करते थे लेकिन अब सरकार पूरी तरह से रॉयल इग्नोर मार देती है और रवैया तो ऐसा है की भईया तुम मरो तो मरो हमें फर्क नहीं पड़ता है लेकिन दिल्ली कि तरफ कूच करने कि कोशिश कि तो फिर हमे फर्क भी परेगा और फिर हम तुम्हारा स्वागत कांटे बिछा कर करेंगे।
  लेकिन इन सबसे भी ज्यादा दुःख कि बात ये है कि शायद हिंदुस्तान की आम जनता को भी अब ज्यादा फर्क नही पड़ेगा, इसलिए नही की जनता जालिम बन चुकी है पर क्यों कि अब उसकी सोच को भी चुप करा दिया गया है। जिस देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिली थी बार बार प्रोटेस्ट कर कर के प्रोटेस्ट कर कर के, आज 75 सालो बाद वही प्रोटेस्ट शब्द अब गाली बन गई है ओर लोगों ने भी भरपूर साथ दिया है इस एजेंडे का।
लद्दाख जो जम्मू कश्मीर का हिस्सा हुआ करता था।  चार MLAs भेजा करता था स्टेट कि संसद में, पर लद्दाख का हमेशा से ये शिकायत रही है कि उनके एरिया को अनदेखा किया जाता था जब वो पुरा फुल स्टेट हुआ करता था। इसी लिए 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 रीफिल करते हुए लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बनाया तो वहां के लोग काफी खुश हुए की चलो अब हमें अपना अधिकार तो मिल जायेगी लेकिन हुआ इसका उल्टा और ये खुशी ज्यादा दिन रह ना पाई जब पता चला कि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में अब कोई इलेक्टेड असंबिली नहीं होगी मतलब अब पुरा एडमिंस्ट्रेशन दिल्ली से बाबुओं के हाथ मतलब इसरो पर चलेगी। सारे प्रोटेक्शन हटने के अब लद्दाख के लोगों में ये डर आगाया है कि अब पूंजीपति बिजनेस मैन आयेंगे और लद्दाख की जमीन खरीद लेंगे, वहा कि प्राकृतिक संपदा वहा के पीस फुल लाइफ, वहा के कल्चर अब तहश - नहश हो जायेगी। इसलिए मांग उठी कि आर्टिकल 244(2) के तहत 6th शेड्यूल दिया जाए। ये अक्सर दी जाती है नॉर्थ ईस्ट के सेंसिटिव रिजन में जहां आदिवासी जनसंख्या ज्यादा है। और ऑटोनोमी कि भी डिमांड रखी गई। याद रखिए इस 6th शेड्यूल से ऑटोनोमस एडमिनिस्ट्रेटिव काउंसिल बना सकते है जिसके पास इनर लाइन परमिट इंप्लीमेंट करने कि अथॉरिटी होती है और वो अपने ही भूमि, जंगल, जल, खेती जैसे मुद्दे पर रेगुलेशन कर सकते है उन पर उनका अधिकार होता है। लेकिन दिकत बस ये आ गई कि अगर ऐसा होता है तो फिर माइनिंग कम्पनी को घुसने में दिकत हो जायेगी। देखा जाए तो लद्दाख एक ईको सेंसिटिव जॉन है और वहां के लोग ये अच्छी तरह से जानते है कि अंधाधुन विकास के लिए क्या किमत चुकानी पड़ती है।

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