सफलता कि जिद्द
ऐसे ही समय बीतते गए राजू के साथ के सारे दोस्त किसी न किसी व्यवसाय में सामिल हो गया। कोई सरकारी कर्मचारी तो कोई शहर काम के लिए निकल गया, राजू अब बिल्कुल अकेला हो गया कोई उसके साथ खेलने वाला उस गांव में रहा ही नही।
दिवाली का समय था उसके बहुत सारे दोस्त अपने अपने घर आया हुआ था, राजू सबके पास खुशी खुशी जाता ,
राजू - हाई सोहन कैसा है तू, चल ना कही घूमने चलते है।
सोहन - हां हां मैं ठीक हूं, पर सुन मैं तेरी तरह बेकार नहीं बैठा हूं, मुझे बहुत काम है इसलिए मैं तुम्हारे साथ कही नहीं जा रहा।
राजू दुखी मन से सोचते सोचते वहा से चला जाता है,
रास्ते में उसे एक दोस्त हरी मिलता है,
राजू - हाई हरि सरकारी जॉब मिलते ही तू तो काफी मोटा गया है लगता है खूब पैसे दबा रहा है।
हरि - सुन भाई इस जॉब के लिए मैने लाखों रूपए खर्च किए है, तो क्यू न दबाऊ, ओर तेरा क्या हो रहा अभी भी खेल, तू लाईफ मै कुछ नहीं कर सकता
ओर साथ के दोस्त हसने लगते है।
राजू बिना कुछ बोले वहा से आगे चला जाता है । रास्ते में राजू का सबसे अच्छा दोस्त सत्यम मिलता है पर वो उसको टोके बिना ही आगे घर कि ओर चल देता है। घर पहुंच कर राजू देखता है धनीराम उसकी मां को उधार के पैसे वापस ना लोटापने की वजह से घर बैजने को मजबूर कर रहा था। तभी राजू से पुछता है
क्या बात है मां धनीराम हमारा घर बैचने को क्यू कह रहा है।
मां रोते हुए बेटा फसल बीज और बीमार दादी की दवा के लिए हमने धनिराम से थोड़े थोड़े पैसे कर के उधार लिए थे जो शुद्ध सहित लाखों रूपए हो गए और फसल ऊपज भी ज्यादा नही होता जिससे की कर्ज के पैसे भी चुका सके।
राजू - आपने मुझे इसके बारे पहले क्यों नहीं बताया
मां डांडते हुए - कैसे बताता तुझे कभी खेलने से फुरसत मिली है, तुम्हारे उम्र के सारे अपनी अपनी जिमेदारी निभा रहा है पर तुझे किसकी परी है।
उस रात दिवाली थी सारा गांव दिवाली मना रहा था परन्तु राजू के घर और मन मै अंधेरा छाया हुआ था। राजू पुरी रात बिस्तर पर लेटा हुआ सोचता रहा, किस तरह उसके दोस्तों ने उसका मजाक उड़ाया, किस तरह धनीराम ने मां की बेजजती की, क्यों वो अब तक गरीब है। वो सोचता रहा कि उसके पास ऐसा क्या है जिससे कोई काम शुरू किया जाए । उसे कुछ समझ तो नही आ रहा था परन्तु उसने अब ठान लिया था कि वो इस गरीबी से निकल के रहेगा। राजू सुबह सुबह ही मां से इजाजत ले कर घर से निकल गया। शहर पहुंच कर वो काम ढूंढने लगा , सुबह से अब शाम होने को आया की तभी राजू की नजर उसके दोस्त सत्यम पर पड़ी, लेकिन वो उसके तरफ कदम बढ़ाने से घबराता रहा , की कही और दोस्तों की तरह वो भी उसका मजाक ना उराने लगे, राजू इतना सोच ही रहा था की सत्यम की नजर राजू पे पड़ी वो दौर कर सत्यम के पास गया और उसका हाल पुछा।
राजू ने कहा- मै अब काम करना चाहता हूं, इस लिऐ मै शहर आया हूं। क्या तुम कोई काम दिला सकते हो,
सत्यम राजू को अपने मालिक दौलतराम के पास ले गया। दौलतराम एक ईमानदार और सुलझा हुआ व्यक्ति था
दौलतराम के पास मुर्गी पालन की दुकान थी, उसने राजू की ईमानदारी को परखा और उसे भी काम पे रख लिया। अब सत्यम और राजू दोनो दौलतराम की पोल्टरी फॉर्म में काम करने लगे, राजू पोल्ट्री फार्म के कामों को कम ही समय में अच्छे से सीख लिया। तभी उसने फैसला किया की वो भी एक खुद का पोल्ट्री फार्म खोलेगा, राजू दिन भर दौलतराम के पास काम करता ओर जो पैसे मिलते उससे वो हर दूसरे दिन दो अच्छे नस्ल के मुर्गी खरीद के घर जाता , उसके पास जो थोड़ी जमीन थी उसी मै मुर्गी पालन के लिए घर बनाया। देखते ही देखते कुछ ही महीनों राजू के घर पास तीस चालीस मुर्गे मुर्गी हो गया, उससे बहुत सारे मुर्गी के बच्चे बढ़ने लगा अब राजू दौलतराम कि मदद से कुछ अंडे अपने भी बैचने लगे , और उससे जो भी पैसा आता वो और मुर्गी ओर उसके खाने पीने मै इन्वेस्ट करने लगा